वह करेंगे मिरा क़ुसूर मुआफ़ हो चुका कर चुके ज़रूर मुआफ़ हुस्न को बे-क़ुसूर कहते हैं है क़ुसूर आप का क़ुसूर मुआफ़ मैं ने ये जान कर ख़ताएँ कीं हर ख़ता होगी बिज़्ज़रुर मुआफ़ वो हँसी आ गई तिरे लब पर हो गया वो मिरा क़ुसूर मुआफ़ बे-ख़ुदी में जो हो ख़ता हम से कम से कम वो तो हो ज़रूर मुआफ़ ख़ामुशी उन की मुझ से कहती है अब हुआ अब हुआ क़ुसूर मुआफ़ फिर न तुम बख़्शना कभी मुझ को पहली तक़्सीर हो ज़रूर मुआफ़ हाथ भी जोड़े पाँव पर भी गिरा अब तो कह दो किया क़ुसूर मुआफ़ है यही काम उस की रहमत का होंगे मेरे गुनह ज़रूर मुआफ़ और आदत मिरी ख़राब हुई काश करते न वो क़ुसूर मुआफ़ ख़ुद ये इक़रार-ए-जुर्म करते हैं कीजिए 'नूह' को ज़रूर मुआफ़