वहाँ कैसे कोई दिया जले जहाँ दूर तक हवा न हो उन्हें हाल-ए-दिल न सुनाइए जिन्हें दर्द-ए-दिल का पता न हो हों अजब तरह की शिकायतें हों अजब तरह की इनायतें तुझे मुझ से शिकवे हज़ार हों मुझे तुझ से कोई गिला न हो कोई ऐसा शेर भी दे ख़ुदा जो तेरी अता हो तेरी अता कभी जैसा मैं ने कहा न हो कभी जैसा मैं ने सुना न हो न दिए का है न हवा का है यहाँ जो भी कुछ है ख़ुदा का है यहाँ ऐसा कोई दिया नहीं जो जला हो और वो बुझा न हो मैं मरीज़-ए-इश्क़ हूँ चारागर तू है दर्द-ए-इश्क़ से बे-ख़बर ये तड़प ही उस का इलाज है ये तड़प न हो तो शिफ़ा न हो