वहम कोई गुमाँ में था ही नहीं नक़्श अपना निशाँ में था ही नहीं मुझ से मंसूब हो गया क्यूँ कर वो जो मेरे बयाँ में था ही नहीं लोग कैसे मिरा यक़ीं करते झूट मेरे बयाँ में था ही नहीं चोर आया गया भी ख़ाली हाथ मैं तो अपने मकाँ में था ही नहीं बस पुरानी घिसी-पिटी बातें रंग ताज़ा बयाँ में था ही नहीं फीकी फीकी बहार गुज़री है रंग अपना ख़िज़ाँ में था ही नहीं हम ने सुन कर भी अन-सुनी कर दी कुछ तअस्सुर अज़ाँ में था ही नहीं मेरे सर के लिए जो हो मौज़ूँ संग वो आस्ताँ में था ही नहीं देर से ख़ामुशी है ख़ेमा-ज़न शोर क्या कारवाँ में था ही नहीं आ रहा था ज़मीन की जानिब वसवसा आसमाँ में था ही नहीं