वहाँ अब जा के देखें हम से क्या इरशाद करते हैं क़ज़ा कहती है चलिए आप को वो याद करते हैं जनाब-ए-वाइज़-ओ-पीर-ए-मुग़ाँ कामिल तो हैं दोनों वो कुछ इरशाद करते हैं ये कुछ इरशाद करते हैं पए ताज़ीम-ए-दर्द उठता है ऐ नावक-फ़गन दिल में क़दम-रंजा जो तेरे नावक-ए-बेदाद करते हैं कभी करते हैं हम बादा-परस्ती जा के का'बे में कभी आ कर हरम से मय-कदे आबाद करते हैं न छोड़ा साथ महशर तक हमारा तू वो मूनिस था ग़म-ए-मरहूम तुझ को ख़ुल्द में हम याद करते हैं वो हँस कर हम से कहते हैं पड़ें इस चाह पर पत्थर जो हम उन से बयान-ए-सख़्ती-ए-फ़रहाद करते हैं क़फ़स से छुट के भी हम क़ैद हैं दाम-ए-मोहब्बत में 'वसीम' आज़ाद कर के भी वो कब आज़ाद करते हैं