वही अरमान जैसे जी जो मुश्किल से निकलते हैं ब-शक्ल-ए-अश्क-ओ-फ़रियाद-ओ-फ़ुग़ाँ दिल से निकलते हैं किसी में हौसला होता है तूफ़ानों से लड़ने का सफ़ीने यूँ तो सब दामान-ए-साहिल से निकलते हैं हमारे हम-सफ़र हम से मुकद्दर हैं बस इतने पर कि हम बच कर ग़ुबार-ए-राह-ए-मंज़िल से निकलते हैं ग़ज़ब है ऐ ज़मीं तो उन हसीनों को निगल जाए जो हुस्न-ए-ज़ौ-फ़िशाँ में माह-ए-कामिल से निकलते हैं भरोसा कुछ नहीं 'महरूम' अनवार-ए-मसर्रत का शरारे भी कभी तारों की महफ़िल से निकलते हैं