वही है दस्त-ए-जुनूँ हमारा बदलता रहता है गो क़रीना उसी से दामन को चाक करना उसी से दामन के चाक सीना ख़ुदा बचाए तो बच सकेंगे सवाल अब नाख़ुदा का क्या है किनारा दूर और थके हैं बाज़ू घिरा है तूफ़ान हैं सफ़ीना जहाँ नहीं ख़ून की ज़रूरत वहाँ ग़लत नाज़-ए-सरफ़रोशी जो किश्त-ए-मेहनत को सींचता हो लहू से बेहतर है वो पसीना ये सक़्फ़-ए-दैर-ओ-हरम नहीं है ये आसमाँ इश्क़ का है इस पर वही मुसाफ़िर क़दर उठाए बना सके जो दिलों को ज़ीना रिदा-ए-ज़र्रीन-ए-मेहर-ए-ताबाँ ख़ला में है तार तार जब तक इमाम की दिल की धड़कनों से कहानी बनती रहीं 'मुबीना' उठी पिलाने की रस्म 'एहसाँ' तो क्यों न ख़ाली रहें प्याले ख़ुदा की बरकत है मय-कदे में भरे हैं ख़म और भरा है मीना