वही जुनूँ की सोख़्ता-जानी वही फ़ुसूँ अफ़्सानों का उड़ा उड़ा सा बुझा बुझा सा रंग वही दीवानों का दरिया तो मानूस है अश्क-लहू की ख़ुद-सर मौजों से दश्त तुझे मालूम है सारा क़िस्सा इन हैरानों का चाहत-भर उम्मीद रखी है और रस्तों-भर पा-मर्दी दरवेशों के चाल-चलन में रंग है सब सुलतानों का अभी नहीं तो आइंदा हम ख़ाक उड़ाने आएँगे कौन सा काम रुका जाता है फ़क़ीरों बे-सामानों का तू जो इस दुनिया की ख़ातिर अपना-आप गँवाता है ऐ दिल-ए-मन ऐ मेरे मुसाफ़िर काम है ये नादानों का