वही मेरी कम-नसीबी वही तेरी बे-नियाज़ी मिरे काम कुछ न आया ये कमाल-ए-नै-नवाज़ी मैं कहाँ हूँ तू कहाँ है ये मकाँ कि ला-मकाँ है ये जहाँ मिरा जहाँ है कि तिरी करिश्मा-साज़ी इसी कश्मकश में गुज़रीं मिरी ज़िंदगी की रातें कभी सोज़-ओ-साज़-ए-'रूमी' कभी पेच-ओ-ताब-ए-'राज़ी' वो फ़रेब-ख़ुर्दा शाहीं कि पला हो करगसों में उसे क्या ख़बर कि क्या है रह-ओ-रस्म-ए-शाहबाज़ी न ज़बाँ कोई ग़ज़ल की न ज़बाँ से बा-ख़बर मैं कोई दिल-कुशा सदा हो अजमी हो या कि ताज़ी नहीं फ़क़्र ओ सल्तनत में कोई इम्तियाज़ ऐसा ये सिपह की तेग़-बाज़ी वो निगह की तेग़-बाज़ी कोई कारवाँ से टूटा कोई बद-गुमाँ हरम से कि अमीर-ए-कारवाँ में नहीं ख़ू-ए-दिल-नवाज़ी