वही स्वाद-ए-हरम है वही हैं बुत-ख़ाने सुनाए जाते हैं उनवाँ बदल के अफ़्साने हँसी ख़ुद अपनी उड़ा ले रहे हैं दीवाने जुनूँ की कौन सी मंज़िल है ये ख़ुदा जाने मआल-ए-शौक़ से अहल-ए-वफ़ा को क्या मतलब ब-जब्र-ए-इश्क़ खिंचे आ रहे हैं परवाने वो जाँ-सिपारी-ए-परवाना दिल-गुदाज़ी-ए-शम्अ' हैं शब को तल्ख़ हक़ाएक़ सहर को अफ़्साने ग़ुरूर-ए-हुस्न-ए-नज़र से मुझे गिरा न सका वफ़ा की कौन सी मंज़िल है ये ख़ुदा जाने जबीं के साथ 'जमाली' का दिल भी झुकता है कशिश सी हुस्न-ए-बुताँ में है क्या ख़ुदा जाने