ये आँखों ही आँखों में क्या हो गए हम अभी जागते थे अभी सो गए हम मक़ाम-ए-तजस्सुस इक ऐसा भी आया कि पाया तुझे और ख़ुद खो गए हम तिरे ग़म को ख़ुद से भी हम ने छुपाया मगर फिर भी रुस्वा-ए-ग़म हो गए हम जो अब तक थे ज़ेब-ए-क़बा-ए-मोहब्बत कुछ ऐसे भी मोती कभी रो गए हम अनासिर ने लीं हिचकियाँ साँस उखड़ी कहा इश्क़ ने जावेदाँ हो गए हम ये मेराज-ए-दर्द-ए-मोहब्बत है शायद कि तेरी नज़र में भी ग़म बो गए हम तड़पने में 'अलताफ़' वो लज़्ज़तें थीं कि तड़पे न जी भर के और सो गए हम