वही उदास सी आँखें उदास चेहरा है ये लग रहा है कि पहले भी तुझ को देखा है मैं चाहता हूँ कि तेरी तरफ़ न देखूँ मैं मिरी नज़र को मगर तू ने बाँध रक्खा है छुपा के रखता हूँ मैं ख़ुद को हर तरह लेकिन ये आइना मुझे हैरत में डाल देता है तुम्हारी बात पे किस को यक़ीन आएगा किसी से तुम न ये कहना ख़ुदा को देखा है हज़ारों मंज़िलें सर कर चुका हूँ मैं लेकिन ये ख़ुद से ख़ुद का सफ़र तो बहुत अजब सा है तिरा वजूद तिरे रास्ते में हाइल है यहीं से हो के मिरा क़ाफ़िला गुज़रता है मैं दिन को शब से भला क्यूँ अलग करूँ सानी ये तीरगी भी तो इक रौशनी का हिस्सा है