वहीं पे सच का मुझे तर्जुमान होना था क़दम क़दम पे जहाँ इम्तिहान होना था तुम्हारी याद को कब तक सजा के रखता मैं कभी तो ख़ाली ये दिल का मकान होना था अजीब शौक़ था उस को भी हक़-नवाई का गँवा के जान भी जग में महान होना था मैं और हिर्स क्या करता लपक के छूने की मुझे ज़मीन उसे आसमान होना था हवा की हुक्म-उदूली से मुझ को हासिल क्या मिरे नसीब में जब बादबान होना था