है जो दरवेश वो सुल्ताँ है ये मा'लूम हुआ बोरिया तख़्त-ए-सुलैमाँ है ये मा'लूम हुआ दिल-ए-आगाह पशेमाँ है ये मा'लूम हुआ इल्म ख़ुद जहल का इरफ़ाँ है ये मा'लूम हुआ अपने ही वाहिमे के सब हैं उतार और चढ़ाव न समुंदर है न तूफ़ाँ है ये मा'लूम हुआ ढूँडने निकले थे जमईयत-ए-ख़ातिर लेकिन शहर का शहर परेशाँ है ये मा'लूम हुआ हम ने आबादी-ए-आलम पे नज़र जब डाली दिल की दुनिया अभी वीराँ है ये मा'लूम हुआ इंक़लाब आप ही दुनिया में नहीं आते हैं वो नज़र सिलसिला जुम्बाँ है ये मा'लूम हुआ बादशाही भी नज़र आती है मुहताज-ए-ख़िराज ताज कश्कोल-ए-गदा याँ है ये मा'लूम हुआ उन के क़दमों पे जो गिर जाए वही क़तरा-ए-अश्क हासिल-ए-दीदा-ए-गिर्यां है ये मा'लूम हुआ उन की नज़रों पे जो चढ़ जाए वही ज़र्रा-ए-ख़ाक सुर्मा-ए-चश्म-ए-ग़ज़ालाँ है ये मा'लूम हुआ उन के दर तक जो पहुँच जाए वही आबला-पा रहबर-ए-क़ाफ़िला-ए-जाँ है ये मा'लूम हुआ आबियारी जो करे ख़ून-ए-रग-ए-जाँ तो 'सबा' दिल-ए-हर-ज़र्रा गुलिस्ताँ है ये मा'लूम हुआ