वहशत है बे-ज़ारी है शाम भी कितनी भारी है बाहर इक सन्नाटा है अंदर आह-ओ-ज़ारी है लिख देता हूँ हाल-ए-दिल कहने में दुश्वारी है दर्द मुसीबत बेचैनी अपनी सब से यारी है सीना चरता जाता है ख़्वाहिश है या आरी है मेरे दिल के कमरे में यादों की अलमारी है प्रेम नगर का हर बंदा जज़्बों का ब्योपारी है आप मोहब्बत कहते हैं धोका है मक्कारी है सोज़ है मेरे लफ़्ज़ों में लहजे में सरशारी है शेर नहीं लिखता साहब पैहम अश्क-शुमारी है