मा'नी-तराज़ियाँ हैं रंगीं-बयानियाँ हैं दुनिया में जितने मुँह हैं उतनी कहानियाँ हैं मा'नी-तराज़ियाँ या रंगीं-बयानियाँ हैं ये भी कहानियाँ हैं वो भी कहानियाँ हैं क्या मेहरबानियाँ थीं क्या मेहरबानियाँ हैं वो भी कहानियाँ थीं ये भी कहानियाँ हैं इक बार उस ने मुझ को देखा था मुस्कुरा कर इतनी सी है हक़ीक़त बाक़ी कहानियाँ हैं सुनता है कोई किस की किस को सुनाए कोई हर एक की ज़बाँ पर अपनी कहानियाँ हैं कुछ बात है जो चुप हूँ मैं सब की सुन के वर्ना याद ऐ 'वफ़ा' मुझे भी सब की कहानियाँ हैं