वहशत-ए-दिल का अजब रंग नज़र आता है अर्सा-ए-हश्र मुझे तंग नज़र आता है दोनों जानिब है बराबर तिरी तस्वीर का रुख़ आईना मेरी तरह दंग नज़र आता है कुछ तो सय्याद ने कुछ बाद-ए-सबा ने लूटा आशियाने का अजब रंग नज़र आता है सुल्ह-जूई की तमन्ना में शब-ओ-रोज़ 'अज़ीज़' यक जहाँ मुज़्तरिब-ए-जंग नज़र आता है