वहशत-ए-ग़म से रात भर यारो रोया मैं फिर हुई सहर यारो जाना चाहें भी तो किधर जाएँ खो गए सारे रहगुज़र यारो ज़ेहन-ओ-दिल से निकाल कर उस को कर दिया ख़ुद को मो'तबर यारो उम्र भर गर्द-ए-राह की सूरत मैं जो करता रहा सफ़र यारो आई ख़ाक-ए-वतन की याद मगर लौट कर फिर गए न घर यारो है तमन्ना नई फ़ज़ा की मगर कट गए अपने बाल-ओ-पर यारो चाहे जितना ख़याल रक्खो मिरा उम्र मेरी है मुख़्तसर यारो