वहशतों का कभी शैदाई नहीं था इतना जैसे अब हूँ तिरा सौदाई नहीं था इतना बार-हा दिल ने तिरा क़ुर्ब भी चाहा था मगर आज की तरह तमन्नाई नहीं था इतना इस से पहले भी कई बार मिले थे लेकिन शौक़ दिलदादा-ए-रुस्वाई नहीं था इतना पास रह कर मुझे यूँ क़ुर्ब का एहसास न था दूर रह कर ग़म-ए-तन्हाई नहीं था इतना अपने ही सायों में क्यूँ खो गईं नज़रें 'ख़ातिर' तू कभी अपना तमाशाई नहीं था इतना