वैसे इस आब-ओ-गिल में क्या न हुआ कोई बंदा मगर ख़ुदा न हुआ उफ़ रे उन के जमाल का आलम मुझ से इज़हार-ए-मुद्दआ न हुआ साक़ी-ए-मै-कदा ने जो दे दी मैं उसे पी के बद-मज़ा न हुआ मुझ से इबरत जहाँ को हासिल है मैं बुरा हो कि भी बुरा न हुआ ज़ख़्म दिल का शुमार कौन करे तीर उस का कोई ख़ता न हुआ क़ैद-ए-ग़म से मगर रिहा ना हुआ मैं ने कोशिश भी की दुआ भी की क़ैद-ए-ग़म से मगर रिहा न हुआ मर गया 'आसी'-ए-शिकस्ता-दिल ये भी अच्छा हुआ बुरा न हुआ