वज्द में मौज-ए-सबा है शायद फिर कोई नग़्मा-सरा है शायद दिल मसर्रत से जुदा है शायद वो नज़र मुझ से ख़फ़ा है शायद क़ाफ़िला भटका हुआ है शायद राहज़न राह-नुमा है शायद इस तरह ज़हर-ए-ग़म-ए-दिल पीना जुर्म-ए-उल्फ़त की सज़ा है शायद रहरव-ए-शौक़ को मंज़िल न मिली रास्ता भूल गया है शायद तेरे एहसास का ऐ जान-ए-वफ़ा आइना टूट गया है शायद बेकली दर्द-ए-जिगर सोज़-ए-वफ़ा मेरी क़िस्मत का लिखा है शायद ग़म से मानूस है इस वास्ते दिल ग़म मोहब्बत का सिला है शायद मेरे हमराह रह-ए-उल्फ़त में रंग-ओ-निकहत की फ़ज़ा है शायद हर-नफ़स पर ये गुमाँ होता है तू मेरे दिल की सदा है शायद छेड़ कर प्यार के नग़्मों को 'निगार' साज़ ख़ामोश हुआ है शायद