वजूद-ए-ख़ाक से बाहर निकाल देगा वो मुझे भी अपने सरापे में ढाल देगा वो मैं जानता हूँ मोहब्बत में हारने के बा'द सभी के सामने मेरी मिसाल देगा वो शिकोह-ए-बख़्त पे मसरूर शख़्स को आख़िर किसी फ़क़ीर के क़दमों में डाल देगा वो मैं उस के हक़ में यहाँ आख़िरी दुआ-गो हूँ मुझे भी अपनी सफ़ों से निकाल देगा वो कोई तो शक्ल है मौजूद मुझ में भी 'शहज़ाद' मैं संग हूँ तो मुझे ख़द्द-ओ-ख़ाल देगा वो