वक़्त ग़मनाक सवालों में न बर्बाद करें कुछ न कुछ सई-ए-इलाज-ए-दिल-ए-नाशाद करें इश्क़ को हुस्न के अतवार से क्या निस्बत है वो हमें भूल गए हम तो उन्हें याद करें बस्तियाँ कर चुके वीरान तिरे दीवाने अब ये लाज़िम है ख़राबा कोई आबाद करें तह में गो हिकमत-ए-परवेज़ है रक़्साँ लेकिन काम हर एक ब-नाम-ए-ग़म-ए-फ़रहाद करें हुज्जत-ओ-इल्लत-ए-मालूल है यारों में 'सहर' बे-सबब शय का भी कोई सबब ईजाद करें