ये तो नहीं कि बादिया-पैमा न आएगा ऐ दश्त-ए-आरज़ू कोई हम सा न आएगा चलना नसीब-ए-ज़ीस्त है यूँ ही चले चलो इस रास्ते में शहर-ए-तमन्ना न आएगा राह-ए-वफ़ा में क़तरा-ए-शबनम भी है बहुत जिस से बुझेगी प्यास वो दरिया न आएगा ख़ुद हो सके तो अपने अंधेरे उजाल लो अब कोई साहब-ए-यद-ए-बैज़ा न आएगा ऐ अहल-ए-दिल ख़मोश कि ये जा-ए-सब्र है दुख तो यूँही रहेंगे मसीहा न आएगा गाहे वुफ़ूर-ए-शौक़ तो गाहे हुजूम-ए-यास सब कुछ तो आएगा हमें जीना न आएगा बैठे रहें 'सहर' यूँही दीवार ओ दर लिए अपना जिसे कहें कोई ऐसा न आएगा