वक़्त ख़ुश-ख़ुश काटने का मशवरा देते हुए रो पड़ा वो आप मुझ को हौसला देते हुए उस से कब देखी गई थी मेरे रुख़ की मुर्दनी फेर लेता था वो मुँह मुझ को दवा देते हुए ख़्वाब-ए-बे-ताबीर सी सोचें मिरे किस काम की सोचता इतना तो वो दस्त-ए-अता देते हुए बे-ज़बानी बख़्श दी ख़ुद-एहतिसाबी ने मुझे होंट सिल जाते हैं दुनिया को गिला देते हुए अपनी रह मसदूद कर देगा यही बढ़ता हुजूम ये न सोचा हर किसी को रास्ता देते हुए आप-अपने क़त्ल में शामिल था मैं मक़्तूल-ए-शौक़ ये खुला मुझ पर तलब का ख़ूँ-बहा देते हुए वो हमें जब तक नज़र आता रहा तकते रहे गीली आँखों उखड़े लफ़्ज़ों से दुआ देते हुए जाने किस दहशत का साया उस को मोहर-ए-लब हुआ डर रहा है वो मुझे खुल कर सदा देते हुए बे-अमाँ था आप लेकिन मोजज़ा है ये 'रियाज़' हाला-ए-शफ़क़त था उस को आसरा देते हुए