हज़ार कोशिश-ए-पैहम के बावजूद हमें तमाम उम्र कोई दोस्त बा-वफ़ा न मिला कहाँ का वस्ल मुलाक़ात ही ग़नीमत है फिर उस के बा'द वो हम से मिला मिला न मिला वो जिस को हम ने ज़माने से बढ़ के चाहा था उस एक शख़्स की चाहत में कुछ मज़ा न मिला तिरी जुदाई के सहरा में खो गए ऐसे सुराग़ अपना कहीं और कहीं पता न मिला ये काएनात कि बे-रंग होती जाती है जो दिल का रंग दिखाती वो आइना न मिला तलाशते रहे काँटों में फूल से पैकर मिज़ाज हम को अज़ल से ही आशिक़ाना मिला तमाम उम्र ही रस्तों की ख़ाक छानी है हमें तो मंज़िल-ए-हस्ती तिरा पता न मिला हमें जो राह दिखाता क़दम क़दम पे 'नबील' मिसाल-ए-ख़िज़्र कोई ऐसा रहनुमा न मिला ख़ुद आप अपने मुक़ाबिल में आ गए हैं 'नबील' हमें मिज़ाज मिला भी तो बाग़ियाना मिला