वक़्त-ए-रुख़्सत वो आँसू बहाने लगे दिल दुखाने के मंज़र सुहाने लगे पुर्सिश-ए-दर्द को जब वो आने लगे ज़ख़्म-ए-दिल मिस्ल-ए-गुल मुस्कुराने लगे रात पल भर को पलकें झपकने न दीं सुबह होते ही आँखें चुराने लगे आँख भर आई बरखा के पानी की जब नाव काग़ज़ की बच्चे बहाने लगे मेरे आँसू थे उन की हँसी का सबब रोई शबनम तो गुल मुस्कुराने लगे