वक़्त-ए-सफ़र जो साथ चले थे By Ghazal << सलीक़ा इश्क़ में मेरा बड़... सँभालने से तबीअत कहाँ सँभ... >> वक़्त-ए-सफ़र जो साथ चले थे लगता था वो लोग भले थे काँटों की तासीर लिए क्यूँ फूलों जैसे लोग मिले थे औरों के घर रौशन करने सारी सारी रात जले थे प्यास बुझाना खेल नहीं था यूँ तो दरिया पाँव तले थे शाम हुई तो सूरज सोचे सारा दिन बे-कार जले थे Share on: