वक़्त की दिल-लगी उरूज पे थी रात भर शाइरी उरूज पे थी रात भर फ़िक्र ने लहू थूका और मिरी बेकली उरूज पे थी ज़ख़्म सारे ही नोच डाले थे वहशत-ए-दिल मिरी उरूज पे थी अक्स उन का निखर के आ बैठा और फिर शाइरी उरूज पे थी शोर था रात भर बहुत मुझ में रात भर ख़ामुशी उरूज पे थी 'सहर' आँखों से नींद भी गुम थी नींद से दुश्मनी उरूज पे थी