वक़्त के साथ ज़िंदगी का दुख मिरे सर पर है हर ख़ुशी का दुख अपने ज़ख़्मों को भूल जाता हूँ देख लेता हूँ जब किसी का दुख लैला-ए-हर-सुख़न परेशाँ है जब क़लम में है बे-कसी का दुख हम-सफ़र अब नहीं कोई मेरा मेरा साथी है हम-रही का दुख आज मेराज हो गई मेरी आज बाँटा है बंदगी का दुख ज़िंदगी सारी बंदगी मेरी मेरा सज्दा है आदमी का दुख तेरे शम्स-ओ-क़मर मिरे किस काम मेरे घर में है तीरगी का दुख मर गया अपने वास्ते फ़रहाद उस ने कब सर लिया किसी का दुख कह रही है नुमूद की हर लय बंद कलियों में है नमी का दुख हर तलब से गुरेज़-पा इक शख़्स चाटता है रही सही का दुख ज़िंदगी सारी रोग में गुज़री था ब-ज़ाहिर जो इक घड़ी का दुख हर कोई उस का साथ देता है जो नहीं बाँटता किसी का दुख वो शरीक-ए-सफ़र नहीं होता मैं उठाता हूँ दोस्ती का दुख याद-ए-याराँ लहू रुलाएगी और फिर एक अजनबी का दुख घट गया चाँद रौशनी मद्धम मेरी आँखों में रौशनी का दुख जान पर बन गई कि आलम पर जान लेवा है आगही का दुख