वलवले जब हवा के बैठ गए हम भी शमएँ बुझा के बैठ गए वक़्त आया जो तीर खाने का मशवरे दूर जा के बैठ गए ईद के रोज़ हम फटी चादर पिछली सफ़ में बिछा के बैठ गए कोई बारात ही नहीं आई रतजगे गा बजा के बैठ गए नाव टूटी तो सारे पर्दा-नशीं सामने ना-ख़ुदा के बैठ गए बे-ज़बानी में और क्या करते गालियाँ सुन-सुना के बैठ गए