वार और फिर वार किस का आप की तलवार का अब रफ़ू मुश्किल से होगा ज़ख़्म-ए-दामन-दार का ख़ून रोना बे-गुनाही पर तिरी तलवार का और हँस देना हमारे ज़ख़्म-ए-दामन-दार का किस क़दर लपका है चश्म-ए-शौक़ को दीदार का बन गया तार-ए-नज़र आख़िर तसव्वुर यार का सेज पर गुज़री मगर गुज़री शब-ए-वस्ल इस तरह चुटकियाँ लेता रहा धड़का फ़िराक़-ए-यार का रश्क-ए-दुश्मन ही से भड़की आतिश-ए-इश्क़-ए-हबीब फूल की वक़अत बढ़ाता है खटकना ख़ार का जाओ अपनी राह लो क़ातिल यूँही होते हैं क्या आज तक तुम को न आया बाँधना तलवार का दिल हमारा आप ही बढ़ कर निशाना हो गया तीर चलने भी न पाया था निगाह-ए-यार का क़त्ल-गह में काम कर जाता है तेरा बाँकपन वार हो जाता है हर अंदाज़ में तलवार का बढ़ गया तेरी खचावट का यहाँ तक तो असर मुझ से अब खिंचता है साया भी तिरी दीवार का दर्द-ए-उल्फ़त को छुपाया राज़-ए-उल्फ़त की तरह वाह क्या कहना हमारे ज़ख़्म-ए-दामन-दार का पास तो आओ तुम्हें क्या खाए जाता है 'फ़रोग़' जान-ए-आशिक़ वो तो भूका है फ़क़त दीदार का