वस्ल में वो छेड़ने का हौसला जाता रहा तुम गले से क्या मिले सारा गिला जाता रहा यार तक पहुँचा दिया बेताबी-ए-दिल ने हमें इक तड़प में मंज़िलों का फ़ासला जाता रहा एक तो आँखें दिखाईं फिर ये शोख़ी से कहा कहिए अब तो कम-निगाही का गिला जाता रहा रोज़ जाते थे ख़त अपने रोज़ आते थे पयाम एक मुद्दत हो गई वो सिलसिला जाता रहा रो रहे थे दिल को हम याँ होश भी जाते रहे गुम-शुदा यूसुफ़ के पीछे क़ाफ़िला जाता रहा मुड़ के क़ातिल ने न देखा वार पूरा हो गया कुश्तगान-ए-नीम-बिस्मिल का गिला जाता रहा वादी-ए-ग़ुर्बत के साथी हैं हमें दिल से अज़ीज़ रो दिए हम फूट कर जब आबला जाता रहा बे-ख़ुदी में महव-ए-नज़्ज़ारा थे हम क्यूँ चौंक उठे हाए वो अपना मज़े का मश्ग़ला जाता रहा क्या मोहज़्ज़ब बन के पेश-ए-यार बैठे हैं 'जलील' आज वो जोश-ए-जुनूँ वो वलवला जाता रहा