यारो नहीं इतना मुझे क़ातिल ने सताया जितना कि मरे दुश्मन-ए-जाँ दिल ने सताया कुछ सरज़निश-ए-कार का शाकी वो नहीं है मजनूँ को तो है साहिब-ए-महमिल ने सताया ग़ुंचा कहूँ या दुर्ज-ए-गुहर तेरे दहन को खुलना नहीं इस उक़्दा-ए-मुश्किल ने सताया आराम से सोया न कमर का तिरी कुश्ता मरक़द में भी मूरान-ए-तह-ए-गिल ने सताया उस का मुझे शब याद दिलाया रुख़-ए-पुर-नूर शक्ल अपनी दिखा कर मह-ए-कामिल ने सताया मेरा दिल-ए-सौदा-ज़दा करता न कभी ग़ुल इस काकुल-ए-पेचाँ के सलासिल ने सताया अफ़्यूँ की किसी रोज़ मैं खा जाऊँगा गोली बे-वजह रुख़-ए-यार के गर तिल ने सताया जब बोसा मैं माँगूँ हूँ तो क्या कहते हो मुँह फेर ऐसा तो किसी भी नहीं साइल ने सताया हर जा मुतजल्ली है वो बे-पर्दा व-लेकिन ग़फ़लत के मुझे पर्दा-ए-हाइल ने सताया था एक तो सय्याद गिरफ़्तार क़फ़स में और दूसरे आवाज़-ए-अनादिल ने सताया ऐ हम-सफ़राँ पेश-रवी की नहीं ताक़त क्या कीजे हमें दूरी-ए-मंज़िल ने सताया पहलू में 'नसीर' आह नहीं है दिल-ए-मुज़्तर इस शेअर-ए-ग़म-आलूदा-ए-बे-दिल ने सताया