वास्ता कोई न रख कर भी सितम ढाते हो तुम दिल तड़प उठता है अब काहे को याद आते हो तुम मेरी सब आज़ादियाँ बंदा-नवाज़ी पर निसार ऐ ख़ोशा क़ैद-ए-वफ़ा ज़ंजीर पहनाते हो तुम लाते हो कैफ़-ए-तरब देते हो पैग़ाम-ए-हयात क्या बताऊँ साथ क्या ले कर चले जाते हो तुम इस तरह छुपते हो जल्वों की फ़रावानी के साथ मैं समझता हूँ कि जैसे सामने आते हो तुम सुन के मेरा हाल हैं आँखें न मलने के वजूह ये भी हो सकता है शायद अश्क भर लाते हो तुम भेज कर ख़ुश-बू हवाओं में ब-अँदाज़-ए-पयाम क्या ये सच है आज यूँ मेरी तरफ़ आते हो तुम दिल-गुज़ारी भी लिए है इम्तियाज़-ए-हुस्न-ओ-इश्क़ ख़ून रो देता हूँ मैं और अश्क पी जाते हो तुम चाँद में रंगत तुम्हारी फूल भी तुम से बसे खींचती हैं दिल फ़ज़ाएँ याद आ जाते हो तुम तुम से है आरास्ता जज़्बात का ताज़ा चमन जैसी रुत होती है वैसा फूल बन जाते हो तुम ज़िक्र इस का है 'रज़ा' ने कीं वफ़ाएँ या नहीं तुम ने आख़िर क्या किया काहे को शरमाते हो तुम