वाइज़ बुतों के आगे न फ़ुरक़ाँ निकालिए सूरत से उन की मअ'नी-ए-क़ुरआँ निकालिए है दिल में मुद्दआ कि एवज़ जाँ निकालिए जी खोइए प जी का न अरमाँ निकालिए इस दिल में ऐसे तीर हैं कितने ही बे-निशाँ आप-अपना देख-भाल के पैकाँ निकालिए है जी में रखिए आह के शोला पे लख़्त-ए-दिल परियों के सर पे तख़्त-ए-सुलैमाँ निकालिए ज़ख़्म और आए लेक मिरी जाँ ख़लिश न जाए दिल चीरिए जिगर से न पैकाँ निकालिए दिखलाइए न काविश-ए-पैकाँ का इंतिज़ार नश्तर से जल्द दीदा-ए-हैराँ निकालिए रहिए 'मज़ाक़' हश्र के मैदाँ में सुर्ख़-रू मज़मून-ए-रू-ए-शाह-ए-शहीदाँ निकालिए