जिधर ख़ुद गया था लगा ले गया न जाने किधर रास्ता ले गया पड़ा था कि बे-कार की चीज़ था मुझे राह से कौन उठा ले गया कोई दे के मुझ को शुऊर-ए-हयात मिरा दूर सब्र-आज़मा ले गया गदा ले गया कब मिरे दर से भीक सदा मेरे लब की चुरा ले गया न पामाल होने दिया सब्र ने गिरे आँसुओं को उठा ले गया ख़िरद ढूँढती रह गई वजह-ए-ग़म मज़ा ग़म का दर्द आश्ना ले गया