वाइज़-ए-तुंद-ख़ू को दे बादा-ओ-जाम साक़िया ताकि वो होश में करे तुझ से कलाम साक़िया सारे ख़तीब शहर के तेरे ख़िलाफ़ हो गए तेरा नसीब हो गई शोहरत-ए-आम साक़िया हम को भी कुछ पता चले बज़्म में कौन कौन है आज अता-ए-जाम हो नाम-ब-नाम साक़िया तू ने कहा तो रो दिए तू ने कहा तो हँस दिए शहर के सारे बादा-कश तेरे ग़ुलाम साक़िया दश्त तुझे दिखाएँगे ख़ाक तिरी उड़ाएँगे अहल-ए-जुनूँ ने लिख लिया तेरा भी नाम साक़िया हम ने सुना है तेरा भी चारागरों में नाम है तुझ से पड़ेगा एक दिन हम को भी काम साक़िया दफ़्तर-ए-कोतवाल में लिक्खा हुआ है आज-कल तेरा भी नाम साक़िया मेरा भी नाम साक़िया