वीराने को घर करते हैं ऐसा हम अक्सर करते हैं ख़्वाबों के कुछ गुल-बूटों से सहरा को हम घर करते हैं ख़ुद को बेहतर करते करते दुनिया को बद-तर करते हैं दुनिया से लड़ने की ख़ातिर ख़ुद को हम ख़ंजर करते हैं इक मुद्दत से जाने क्यों हम घर को भी दफ़्तर करते हैं घर में वो गर आ जाए तो हम अंदर बाहर करते हैं कोई पूछे हाल-ए-दिल तो आँखों को हम तर करते हैं