सब के दुख में शामिल हो कर सब का होना पड़ता है अपनी हस्ती को पाने में ख़ुद को खोना पड़ता है उलझन के संग बैठे बैठे पहरों रोना पड़ता है उस की चाहत दिल में रख के उस का होना पड़ता है साहिल पर ही बैठे बैठे सोचो चाहे जो लेकिन सागर से मिलने की ख़ातिर दरिया होना पड़ता है शोहरत की बहकी राहों से तुम भी घर आ जाओगे दिन ढलते ही सूरज को भी जा कर सोना पड़ता है हम फूलों से चेहरे वाले मरहम जैसी तबीअत है ज़ख़्मों की ख़ातिर तो भाई नश्तर होना पड़ता है