विसाल-ओ-हिज्र के दौरानिए पड़े हुए हैं कहीं पे ख़्वाब कहीं रतजगे पड़े हुए हैं लहू का रंग भी ताज़ा है जा-ब-जा देखो कहीं पे बस्ते कहीं क़ाएदे पड़े हुए हैं जुड़ा हुआ है मिरे घर से कोई वीराना जहाँ पे दूर तलक वाक़िए पड़े हुए हैं तुम्हारे लम्स ने लज़्ज़त का रस निचोड़ा है अभी बदन में कई ज़ाइक़े पड़े हुए हैं मैं ख़ुद को कैसे सँभालूँ जो कर्बला पहुँचूँ क़दम क़दम पे वहाँ सानहे पड़े हुए हैं हमें सफ़र का इशारा नहीं हुआ वर्ना ज़मीं पे रास्ते ही रास्ते पड़े हुए हैं किसी का अक्स किसी से बदल न जाए कहीं इक आइने में कई आइने पड़े हुए हैं