तिरे बीमार से उलझा हुआ है मिरे मोहसिन को जाने क्या हुआ है सफ़ीना साहिलों तक आ तो जाए हवा ने रास्ता बदला हुआ है फ़ज़ा में तिश्नगी फैली हुई है मुसाफ़िर दश्त में ठहरा हुआ है इकट्ठे घूमते हैं क़ैस-ओ-लैला ज़माना इस-क़दर बदला हुआ है मैं अब तक गिर गया होता ज़मीं पर किसी के हाथ ने थामा हुआ है तिरी जानिब क़दम उठते नहीं हैं मुझे हालात ने रोका हुआ है अधूरी ख़्वाहिशें कब तक समेटूँ ये मलबा दूर तक बिखरा हुआ है हमारे घर के अँधेरों का 'आसिम' पस-ए-दीवार भी चर्चा हुआ है