विसाल-रुत की कमाई समझ में आने लगी जुदा हुए तो जुदाई समझ में आने लगी क़फ़स के पार की दुनिया का हुस्न खिलने लगा रिहा हुए तो रिहाई समझ में आने लगी उसे भी अपनी भलाई की फ़िक्र लाहक़ थी हमें भी अपनी भलाई समझ में आने लगी खुली जब आँख गुमाँ से यक़ीन की जानिब तो मंज़रों की इकाई समझ में आने लगी बस एक दिन ही गुज़ारा था बे-घरी में 'सफ़ीर' ख़ुदा की सारी ख़ुदाई समझ में आने लगी