बज़्म-ए-रंग-ओ-बू का हूँ मैं राज़दाँ तन्हा है मिरी ज़मीं तन्हा और आसमाँ तन्हा रहरवान-ए-मंज़िल ही जब बिछड़ चुके सारे क्या करेगा मंज़िल पर मीर-ए-कारवाँ तन्हा रहगुज़र में यकसूई अंजुमन में तन्हाई हम तिरे तसव्वुर में थे कहाँ कहाँ तन्हा ज़िंदगी की राहें अब पुर-ख़तर हैं इस दर्जा आप चल नहीं सकते दो-क़दम यहाँ तन्हा ज़ौक़-ए-बंदगी हो तो बंदगी को काफ़ी हैं इक मिरी जबीं तन्हा तेरा आस्ताँ तन्हा उन से हाल-ए-दिल कहना ऐ 'नसीर' लाज़िम है ख़ामुशी नहीं होती ग़म की तर्जुमाँ तन्हा