वो आने वाला नहीं फिर भी आना चाहता है मगर वो कोई मुनासिब बहाना चाहता है ये ज़िंदगी है ये तो है ये रोज़गार के दुख अभी बता दे कहाँ आज़माना चाहता है कि जैसे उस से मुलाक़ात फिर नहीं होगी वो सारी बातें इकट्ठी बताना चाहता है मैं सुन रहा हूँ अँधेरे में आहटें कैसी ये कौन आया है और कौन जाना चाहता है उसे ख़बर है कि मजनूँ को रास है जंगल वो मेरे घर में भी पौदे लगाना चाहता है वो ख़ुद-ग़रज़ है मोहब्बत के बाब में 'ताबिश' कि एक पल के एवज़ इक ज़माना चाहता है