वो अगर बे-हिजाब हो जाता ख़ल्क़ में इंक़लाब हो जाता दिल से होती अगर दुई मादूम ज़र्रा भी आफ़्ताब हो जाता हश्र तक होश में न आते 'कलीम' वो अगर बे-नक़ाब हो जाता आतिश-ए-इश्क़ ने जिगर फूँका दिल भी जल कर कबाब हो जाता तुम पिलाते जो हाथ से अपने हर क़दह आफ़्ताब हो जाता इश्क़ में लुत्फ़ है तड़पने का ये सुकून इज़्तिराब हो जाता दिल लगाना सवाब था लेकिन जी छुड़ाना अज़ाब हो जाता न लगाते बुतों से दिल आसी न ज़माना ख़राब हो जाता