वो अपनी आन में गुम है मैं अपनी आन में गुम ये और बात कि दोनों हैं झूटी शान में गुम मैं हूँ यक़ीन में गुम और वो गुमान में गुम तमाम रस्म-ए-मोहब्बत है दरमियान में गुम मिरे फ़साना-ए-दिल में छुपा है नाम तिरा मिरा भी नाम है कुछ तेरी दास्तान में गुम बहुत अजीब है ये भी बुलंदी-ओ-पस्ती कोई ज़मीन में गुम कोई आसमान में गुम हर एक शय की मैं क़ीमत लगाए फिरता हूँ ये कारोबार है क्या हों ये किस दुकान में गुम वसीअ' कितना है 'रिज़वान' दिल का आलम भी तमाम अहल-ए-जहाँ हैं इसी जहान में गुम