वो बात करे भी तो दिल-आज़ार करे है इंकार करे है न तो इक़रार करे है वो फिर नए अंदाज़ से इक वार करे है फिर तीर-ए-नज़र दिल को मिरे पार करे है अंदाज़-ए-नज़र उस का ज़माने से जुदा है दिल मुफ़्त में लेने से भी इंकार करे है जो हो न सका बर्क़-ए-तपाँ-ख़ेज़ से ज़ालिम वो काम तिरी गर्मी-ए-गुफ़्तार करे है मैं जाग के सोया ही था आख़िर शब-ए-फ़ुर्क़त क्यों वा'दे की आहट मुझे बेदार करे है फिर किस ने सदा हक़्क़-ओ-सदाक़त की सुनाई अब याद किसे फिर रसन-ओ-दार करे है 'आज़ाद' हर इक गाम पे वो ग़म्ज़ा-ए-ग़म्माज़ ज़र्रों को सितारे दम-ए-रफ़्तार करे है