वो बेकली नहीं दिल को वो इज़्तिराब नहीं तुम्हारे हिज्र का अब कुछ मुझे इ'ताब नहीं जला-भुना हूँ मुझे ख़्वाहिश-ए-कबाब नहीं पिला दे धो के सुबू ही अगर शराब नहीं सुना है हम ने कि आरिज़ पे है ग़ुबार सा कुछ बला से ख़त का हमारे अगर जवाब नहीं तिरी ख़बर के लिए देखते हैं सब अख़बार मुतालेए' में किसी के कोई किताब नहीं रसीदा बूद बुलाए वले ब-ख़ैर गुज़श्त तुम्हारी ज़ुल्फ़ से ख़ातिर को पेच-ओ-ताब नहीं पिलाना तौल के बादा-ए-मुग़ाँ ख़ुदा के लिए ये दिन शरफ़ के हैं मीज़ाँ में आफ़्ताब नहीं फ़रार क्यूँ न हो हर रोज़ जाँ-निसार इक एक हुज़ूर आप की वो दौलत-ए-शबाब नहीं तुम्हारे ज़ुल्फ़ की तस्वीर क्या करे सैराब ख़ता मुआ'फ़ हो हम तिश्ना-ए-सराब नहीं 'नसीम' पी गए अब मय-कदों में है क्या ख़ाक दवा के वास्ते लंदन में भी शराब नहीं