वो बे-नवा रह-ओ-रस्म-ए-क़लंदरी जाने जो ख़ाक-ए-तन पे लिबास-ए-तवंगरी जाने रक़ीब से तिरी परख़ाश देख कर ऐ शोख़ वही हो ख़ुश जो न ये जंग-ए-ज़रगरी जाने अदा-ओ-नाज़-ओ-तबस्सुम निगाह-ए-गोशा-ए-चश्म सो उस के कौन ये अंदाज़-ए-दिलबरी जाने जहाँ के क़त्ल से क्या हो उसे ख़तर हैहात जो शोख़ कुछ न मआल-ए-सितमगरी जाने दिमाग़-ए-बहस नहीं ख़ारिजी से ऐ 'माहिर' अक़ीदा कौन मिरा ग़ैर-हैदरी जाने