मैं तो मोज़ाहिम नहीं ग़ैर के हाँ जाइए गाह क़दम-रंजा आप याँ भी तो फ़रमाइए तुम से तो ग़ैर अज़-रज़ा चारा नहीं मुझ को लेक का'बा-ए-दिल को मिरे सोच के टुक ढक जाइए क़स्द कहीं और का हम से ये कह कर चले जाऊँ हूँ घर आइयो यूँ तो न बहकाइए और जगह कब मिले दिल की ख़बर हाँ मगर तेरी गली में सुराग़ ढूँडिए तो पाइए 'माहिर'-ए-बे-चारा पर कर के ये जौर-ओ-जफ़ा फिर न ज़बाँ अपनी पर नाम-ए-वफ़ा लाइए